सोमवार, 12 दिसंबर 2011

अल्पजीवी

नियम ये कैसा 
आज के युग का
जिधर भी देखो 
लोग अल्पजीवी बने पड़े हैं
न ख्याल में है उम्र बाकी 
न उनकी कोशिश हो उम्र लम्बी

अभी जो मैंने घुमाई नज़रें
मृत्यु शैया पे दोस्ती तड़प रही थी
मर के कुछ लोग हैं अब भी ज़िंदा
कुछ लोग जीते जी मर चुके हैं

मेरे यार देखना
आज जो हैं अपने 
कल तुमसे दूर होते जा रहे हैं
जो ख़्वाब देखे थे हमने मिलकर
वो ख़्वाब भी अब टूटे जा रहे हैं

जज्बात की उम्र छोटी थी पहले लेकिन
धैर्य अब तो बेमौत मर रहा है
पाना चाहे वो तुरंत सबकुछ
हताश हो जिन्दगी लुट रही है

वो फूल दिल में खिला सवेरे
शाम होते ही मुरझा गया है
जो चले थे कभी जहाँ बदलने
आज वो अपना घर बना रहें हैं

नियम ये कैसा 
आज के युग का
जिधर भी देखो 
लोग अल्पजीवी बने पड़े हैं

बुधवार, 30 नवंबर 2011

कुत्ते की वफ़ा

मालिक की रोटी खाकर
दुम तो हिलाएगा
देश-हित का सपना
क्या कभी
उसके मन में आयेगा.

यह कुत्ता
कारों में चलता है,
भूख से बदहाल बच्चों को देखकर
शान से अकड़ता है
दिल-दिमाग पर हावी 
यौनांग, जिह्वा और उदर
स्वार्थों की लम्बी पूंछ
लपलपाता इधर-उधर

अपनी बस्ती में भी
बसते देखा स्वानों को
मालिक की वफ़ा निभाते
काट खाते देखा इंसानों को.

बेजान दिल

क्या?
80 करोड़ भूखे हैं देश में?
मैं कहता हूँ नहीं
80 नहीं, 35 करोड़ नहीं
न ही 35 लाख
35 हजार भी ज्यादा है
35 जीते-जागते इंसान
या इसे भी छोड़ो
केवल एक इंसान
एक
गरीबी में झुलसता
भूख से तिलमिलाता
तूफानी-सर्द हवाओं में
बिना कम्बल,
छत के बगैर
सोने को अकुलाता
क्यों?
तिसपर सवाल नहीं
क्यों मन में तुम्हारे
हृदयहीन तुम,
निष्ठुर
तुम्हारे लिए 80 करोड़ भूखे इंसान
और 80 करोड़ पत्थर के बेजान टुकड़ों में
कोई अंतर नहीं.

नवप्रभात

शैशव रात के
गहन अन्धकार में
अंडे की खोल तोड़
निकला एक नन्हा चूजा
पलकें झपकाते
देखता आस-पास
अन्धकार-अन्धकार
तभी अकस्मात
मद्धम चांदनी की किरणों ने
दिया प्रकट होने का आभास
चूजे ने देखा आस-पास
दुनिया है सुन्दर,
नहीं उदास
हाथ जोड़ विनती करता वह बार-बार
रात अब ढले नहीं
चाँद अब छुपे नहीं
भय से व्याकुल अपरम्पार
चाँद के छिप जाने पर
अंधियारी रात आयेगी
पगला वह क्या जाने?
निशा जब छँट जायेगी
चाँद डूबेगा
सूरज की किरणें
नवप्रभात लायेंगी.

कितनी शानदार है यह मौत

कौन कहता है कि मौत आयी तो मर जाउंगा.
मै तो दरिया हूँ समंदर में उतर जाउंगा.

                        -अहमद नदीम क़ासमी

मौत आती है दबे पाँव
चुपचाप दबोचती है
जिस्म और जान को.
लोग अकाल मौत मरते हैं
निरुद्देश्य-निर्मम
बड़ी भयावह है यह मौत

पता नहीं कब

मुझे-तुझे या उसे
मौत आकर कस ले
शिकंजे में
बड़ी भयावह है यह मौत

चलते हुए

बस के नीचे कुचला जाना
कैंसर या दिल के दौरे का
शिकार होना
बड़ी भयावह है यह मौत

जिन्दगी से निराश हो

लगाना मौत को गले
या अनगिनत बीमारियों की
चपेट में आ जाना
बड़ी भयावह है यह मौत

लोग मर रहें है

पल-पल तिल-तिल
हम उनकी याद में
व्याकुल हैं
बड़ी भयावह है यह मौत

लेकिन कुछ लोग

जीते हैं शान से
नहीं चुपचाप मरते हैं शान से
किसी मासूम के लिए
देशहित
हंसते हुए कुर्बान होना
भय नहीं गर्व देता है
कितनी शानदार है यह मौत.

मंगलवार, 18 अक्तूबर 2011

राजनीति के गिरगिट


एक डाल पर बैठा गिरगिट 
पल-पल रंग बदलता 
एक देश में देखा गिरगिट 
पल-पल रंग बदलता

इठलाता -इतराता कभी
कभी भूटान नरेश के विवाहोत्सव में जाता
दीन-हीन हालत देख दलित की
दिल में करुणा उपजाता
सूखी रोटी रखकर थाली में 
चुपचाप मगन हो खाता
घेरे रहते फोटूग्राफर-मीडिया 
लेने को तश्वीर-खबर

एक डाल पर बैठा गिरगिट 
पल-पल रंग बदलता 
एक देश में देखा गिरगिट 
पल-पल रंग बदलता

एक आन्दोलन में देखा गिरगिट
पल-पल रंग बदलता
कभी मराठी मानुष की जय
कभी पी-ऍम के संग जाता
पृष्ठभूमि में भारत माँ की,
कभी गांधीजी की फोटू लगवाता
अनशन करके धमकी देता
मध्यम वर्ग का जी बहलाता
विश्व बैंक का काम है करता
भारत का नेता कहलाता

 एक डाल पर बैठा गिरगिट 
पल-पल रंग बदलता 
एक देश में देखा गिरगिट 
पल-पल रंग बदलता

मंगलवार, 11 अक्तूबर 2011

सियार का अनशन-भाग 2


(सियार का अनशन-भाग 1)


जो जीव शेर का भोजन बनने जाते, उनकी डर, बेबसी, तड़प और आँखों में आंसू को देखकर कोई भी पत्थर दिल इंसान रो दे. सभी जीव खौफज़दा थे, बेबस थे. करे तो क्या करे? मृत्यु सभी जीवों का अंतिम गंतव्य है. लेकिन असमय-अकाल कोई नहीं मरना चाहता. उनको मारने वाला अत्याचारी है, अन्यायी है. लेकिन जंगल का क़ानून यही है और हमारे देश का भी. विरोधी की आवाज को खामोश कर दिया जाता है, उसे मार दिया जाता है. लेकिन क्या मरने के डर से सच का साथ छोड़ दे. जाकर गलत लोगों के साथ खड़े हो जाये. कायर बन जाये. 

नहीं, हम सत्य, आक्रोश और वीरता के साथ जियेंगे और इसी उद्देश्य के लिए मरेंगे भी. यही सोच उनकी भी थी जिन्हें-'शैतानों के गिरोह' के नाम से जाना जाता था. शेर उनसे नफरत करता था. उनके ज़िंदा या मुर्दा पकड़े जाने पर इनाम घोषित था. सारे जीव उनसे प्यार करते थे लेकिन उनके हिंसात्मक रास्ते को समझ नहीं पाते थे. उनका सरदार भोलू खरगोश सबमें न्यारा था. वह शेर की काली करतूते समझता था. सियार का षणयंत्र भी समझता था. वह सभी जीवों को शेर के आतंक से मुक्त कराना चाहता था. वह हिंसा का अंधा भक्त भी नहीं था. लेकिन यह हो कैसे? यद्यपि भोलू खरगोश और उसके साथी विवेकशील थे, धैर्यवान थे, मेहनती थे. लेकिन समाधान तो उनके पास भी नहीं था.

शेर रोज-रोज एक जानवर को मारकर खाता जा रहा था. सियार का अनशन लोग भूल चुके थे. अब सभी जीव शेर से छुटकारा चाहते थे.

एक दिन की बात है-दिनभर भोलू खरगोश बहुत उदास और चिंतित था. कल शेर के पास जाने की बारी उसकी थी. इस डर से उसे कुएं में डूब मरने का क्षणिक ख्याल आया. लेकिन जैसे ही कुएं में कूदते समय उसे अपनी आकृति दिखी, एक विचार उसके दिमाग में कौंध गया. रात में उसने अपने गिरोह के साथ गुप्त मीटिंग की. अपनी तरकीब सबको सुझाई. शुरू में सबने संदेह किया लेकिन धीरे-धीरे बात सबकी समझ में आ गयी. योजना गुप्त रहे इसलिए बात फैलाई नहीं गयी. 

सुबह हुई.......
आज भोलू खरगोश को शेर के पास जाना था. सभी जानवरों को दोपहर २ बजे पुराने पीपल के पास वाले कुएं पर बुलाया गया. दिन चढ़ता गया. शेर की भूख बढ़ती गयी. भोलू खरगोश शेर के पास नहीं गया. देर होने से शेर का पारा सातवें आसमान तक चढ़ गया.


१२ बज गये. भोलू खरगोश शेर के पास पहुंचा. शेर गुस्से में दहाड़कर बोला "कहाँ मर गया था तू??" "हुजूर, गुस्ताखी माफ़, रास्ते में आपसे भी बड़ा शेर मिल गया था." खरगोश ने कांपने का नाटक करते हुए जवाब दिया. इतना सुनते ही शेर गरज उठा "मुझसे भी बड़ा शेर?". "हाँ हुजूर, वह मुझे खाने जा रहा था, लेकिन जब मैंने आपका नाम लिया तो उसने आपको गाली दी और कहा देख लूंगा उसे. किसी तरह बहाना बनाकर आपके पास पहुँच पाया." शेर गुस्से से आग बबूला हो गया और बोला "ले चल मुझे उसके पास, उसे अभी सबक सिखाता हूँ."

बच्चों, इसलिए कहते हैं कि एक म्यान में दो तलवार और एक जंगल में दो शेर नहीं रह सकते. खरगोश आगे-आगे और शेर पीछे-पीछे चल दिया. रास्ते में सियार ने जब यह देखा तो समझ गया कि दाल में कुछ काला है. उसने शेर से कहा "मेरे प्यारे महाराज इसके पीछे कहाँ जा रहे हो?" शेर गुस्से से अंधा हो रहा था बोला "चल हट, दूसरे शेर को मारकर ही दम लूंगा." सियार समझ गया शेर गुस्से में किसी कि बात नहीं सुनेगा. लेकिन उसका भी फ़ायदा शेर को बचाने में ही था क्योंकि इस व्यवस्था से उसे भी लाभ था.सियार भागकर अपने दूसरे दोस्त भालू, चीता, बाघ आदि को बुलाने गया क्योंकि वह अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता था.


उधर जैसे ही शेर ने कुएं में झाँका उससे भी बड़ा शेर दिखा. उसने दहाड़ मारी, उससे भी तेज दहाड़ सुनाई दी. शेर ने कुएं में छलांग लगा दी. लेकिन पानी में गिरते ही उसके होश ठिकानें आ गये. बचाओ-बचाओ करके वह चिल्लाने लगा. इतने में सियार मण्डली रस्सी लेकर वहां पहुँच गये. भोलू खरगोश पेड़ के पीछे दुबक गया. रस्सी कुएं में डालकर शेर के दोस्तों ने उसे ऊपर खींचना शुरू किया. 


लेकिन देर हो चुकी थी. दोपहर के २ बज चुके थे. शैतानों के गिरोह के नेतृत्व में सभी जानवर शोर मचाते हुए कुएं के पास पहुंचाते जा रहे थे. राजा शेर के कुएं में गिरने कि खबर सुन उनका हौसला दुगुना हो गया था. संगठित ताकत ने उनमें जोश का संचार कर दिया था. एक साथ शोर मचाते हजारों छोटे-बड़े जानवर कुएं के पास पहुँचते जा रहे थे. तेंदुए, सियार, भालू और बाघ उनकी एकजुट ताकत देख घबरा गये. सभी जानवरों ने मिल दुष्ट मंडली कि खूब धुलाई की और अंत में उन्हें भी शेर के पास कुएं में धकेल दिया.

इस तरह आखिरी हिंसा ने उस जंगल के इतिहास को बदल दिया. अब सभी जीव प्रेम से एक-दूसरे के साथ जीवन बीताते है. अब उनके बीच हिंसा का कोई नामो-निशान नहीं.
   

सोमवार, 19 सितंबर 2011

सियार का अनशन-भाग 1

प्यारे बच्चों, सुनो कहानी................

एक बार की बात है. किसी जंगल का राजा एक शेर था.
उसकी हिंसा और आतंक से सभी जानवर परेशान थे. कुछ उसका नाम सुनकर डर से कांपते थे और कुछ गुस्से से लाल हो जाते थे. सभी जीवों ने शेर का विरोध करने का मन बनाया. लेकिन आगे कौन बढ़े? जो भी पहल करता शेर उसे मारकर खा जाता.

दिन बीतते गए. जानवरों का गुस्सा बढ़ता गया. उन्होंने संगठन बनाने की सोची. रामू हाथी उन्हें संगठित भी करने लगा.

बच्चों तुम तो जानते ही हो- एकता में कितनी ताकत है. कैसे ढेर सारी चींटियाँ मिलकर चीनी के बड़े दाने उठा ले जाती हैं और एक-एक करके लकड़ी तोड़ी जा सकती है लेकिन १०-२० लकड़ियों के गठ्ठर को तोड़ना मुश्किल है. यह बात धीरे-धीरे सभी जीवों को समझ में आने लगी.

लेकिन इन बातों की खबर लगते ही शेर चौकन्ना हो गया. पहले उसने जानवरों को रंग, धर्म, जाति, लिंग और क्षेत्र के आधार पर लड़वाया था. इस बार उसकी इनमें से कोई तरकीब न चली. अबकी उसने अपने जिगरी दोस्त सियार को काम पर लगा दिया.

सियार ने शेर के खिलाफ अनशन शुरू किया.

मामले में बहुत पेंच फंसे. कोई कहता सियार धूर्त है, चाल चल रहा है. तो कोई कहता कि सियार का ह्रदय परिवर्तन हो गया है. माना वह शेर के साथ था, लेकिन अब वह बदल गया है. कोई उलझन में सर पीटकर बैठ जाता.

सियार का अनशन जारी था. लोगों में बहस चल रही थी कि सियार के अनशन की असली मांग क्या है? उन जानवरों में कोई ऐसा नहीं था जो धैर्य से छानबीन करे, सबूत जुटाए और मामले कि तह में जाए. सभी मेहनत से बचते थे, सभी कामचोर थे. दूसरों की सुनी-सुनाई बातों पर कान देते थे. कान के बड़े कच्चे थे. लोगों की इन्हीं कमजोरी का फायदा सियार को मिल रहा था.

इतने पर भी लोगों को पता नहीं था कि सियार करना क्या चाह रहा है. वह शेर के खिलाफ भी है. लेकिन वह कहता है कि मैं शेर के आतंक से लोगो को बचाऊंगा. शेर को सभ्य बनाऊंगा. उसे समझाऊंगा कि अनावश्यक जीवों को मारना ठीक नहीं है. हर रोज एक जीव तुम्हारे पास जाएगा, उसे मार कर खा लेना. तुम्हें मेहनत करने की भी जरूरत नहीं.

कुछ लोग सियार की इस योजना से सहमत नहीं थे. वे शेर से पूरी तरह मुक्ति चाहते थे. उनका नारा था क्रान्ति, पूरी मुक्ति, हिंसा से पूरी तरह छुटकारा. लेकिन इसके लिए वे करे क्या वे नहीं जानते थे. ज्यों ज्यों सियार का अनशन बढ़ता जाता, शेर के प्रति लोगों का गुस्सा बढ़ता जाता, सियार की चालबाजियां भी धीरे-धीरे लोगों ने समझनी शुरू कर दी.

लोग तो यह कहते पाए गये-बाप रे ऐसा अहिंसात्मक आन्दोलन सियार ही कर सकता है क्योंकि वह शेर का पुराना दोस्त है. अन्यथा हमारी-तुम्हारी औकात ही क्या? हम तो शेर के सामने जाते ही उसका निवाला बन जायेंगे.

सियार कि भूख कहिये, या लोगों की बढ़ती जागरूकता, या शेर कि चालाकी. भूख हड़ताल ख़त्म हो गयी. हिरन के ताजा गोस्त के साथ शेर ने सियार का अनशन तुडवाया. जीत शेर की हुई या सियार की या सभी जानवरों की?


चारों तरफ गीत गाये जा रहे थे.....
हमारी भी जय जय,
तुम्हारी भी जय जय,
न तुम हारे न हम हारे.

कानून बना दिया गया कि महाराजा शेर के पास एक-एक करके जानवर अपनी बारी आने पर रोज जायेंगे. शेर उन्हें मारकर आराम से खायेगा. इससे शेर के गुस्से का शिकार दूसरे जानवर नहीं बनेंगे. कहानी ख़त्म हो गयी. ऐसा सोचना एक गलती होगी.


बच्चों क्या अंत में सत्य की जीत हुई. आतताई शेर से छुटकारा मिला. दरअसल जीत खूंखार शेर की हुई. सत्य कुछ समय के लिए पराजित हो गया.

जो जीव शेर का भोजन बनने जाते, उनकी डर, बेबसी.............

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सियार का अनशन-भाग 2