बुधवार, 30 नवंबर 2011

कुत्ते की वफ़ा

मालिक की रोटी खाकर
दुम तो हिलाएगा
देश-हित का सपना
क्या कभी
उसके मन में आयेगा.

यह कुत्ता
कारों में चलता है,
भूख से बदहाल बच्चों को देखकर
शान से अकड़ता है
दिल-दिमाग पर हावी 
यौनांग, जिह्वा और उदर
स्वार्थों की लम्बी पूंछ
लपलपाता इधर-उधर

अपनी बस्ती में भी
बसते देखा स्वानों को
मालिक की वफ़ा निभाते
काट खाते देखा इंसानों को.

बेजान दिल

क्या?
80 करोड़ भूखे हैं देश में?
मैं कहता हूँ नहीं
80 नहीं, 35 करोड़ नहीं
न ही 35 लाख
35 हजार भी ज्यादा है
35 जीते-जागते इंसान
या इसे भी छोड़ो
केवल एक इंसान
एक
गरीबी में झुलसता
भूख से तिलमिलाता
तूफानी-सर्द हवाओं में
बिना कम्बल,
छत के बगैर
सोने को अकुलाता
क्यों?
तिसपर सवाल नहीं
क्यों मन में तुम्हारे
हृदयहीन तुम,
निष्ठुर
तुम्हारे लिए 80 करोड़ भूखे इंसान
और 80 करोड़ पत्थर के बेजान टुकड़ों में
कोई अंतर नहीं.

नवप्रभात

शैशव रात के
गहन अन्धकार में
अंडे की खोल तोड़
निकला एक नन्हा चूजा
पलकें झपकाते
देखता आस-पास
अन्धकार-अन्धकार
तभी अकस्मात
मद्धम चांदनी की किरणों ने
दिया प्रकट होने का आभास
चूजे ने देखा आस-पास
दुनिया है सुन्दर,
नहीं उदास
हाथ जोड़ विनती करता वह बार-बार
रात अब ढले नहीं
चाँद अब छुपे नहीं
भय से व्याकुल अपरम्पार
चाँद के छिप जाने पर
अंधियारी रात आयेगी
पगला वह क्या जाने?
निशा जब छँट जायेगी
चाँद डूबेगा
सूरज की किरणें
नवप्रभात लायेंगी.

कितनी शानदार है यह मौत

कौन कहता है कि मौत आयी तो मर जाउंगा.
मै तो दरिया हूँ समंदर में उतर जाउंगा.

                        -अहमद नदीम क़ासमी

मौत आती है दबे पाँव
चुपचाप दबोचती है
जिस्म और जान को.
लोग अकाल मौत मरते हैं
निरुद्देश्य-निर्मम
बड़ी भयावह है यह मौत

पता नहीं कब

मुझे-तुझे या उसे
मौत आकर कस ले
शिकंजे में
बड़ी भयावह है यह मौत

चलते हुए

बस के नीचे कुचला जाना
कैंसर या दिल के दौरे का
शिकार होना
बड़ी भयावह है यह मौत

जिन्दगी से निराश हो

लगाना मौत को गले
या अनगिनत बीमारियों की
चपेट में आ जाना
बड़ी भयावह है यह मौत

लोग मर रहें है

पल-पल तिल-तिल
हम उनकी याद में
व्याकुल हैं
बड़ी भयावह है यह मौत

लेकिन कुछ लोग

जीते हैं शान से
नहीं चुपचाप मरते हैं शान से
किसी मासूम के लिए
देशहित
हंसते हुए कुर्बान होना
भय नहीं गर्व देता है
कितनी शानदार है यह मौत.